Remembering the love of his life, here is a lovely poem of Kishan Saroj. Rajiv Krishna Saxena
याद आये
याद आये फिर तुम्हारे केश
मन–भुवन में फिर अंधेरा हो गया
पर्वतों का तन
घटाओं ने छुआ,
घाटियों का ब्याह
फिर जल से हुआ;
याद आये फिर तुम्हारे नैन,
देह मछरी, मन मछेरा हो गया
प्राण–वन में
चन्दनी ज्वाला जली,
प्यास हिरनों की
पलाशों ने छली;
याद आये फिर तुम्हाते होंठ,
भाल सूरज का बसेरा हो गया
दूर मंदिर में
जगी फिर रागिनी,
गंध की बहने लगी
मंदाकिनी;
याद आये फिर तुम्हारे पांव,
प्रार्थना हर गीत मेरा हो गया
∼ किशन सरोज
लिंक्स:
- कविताएं: सम्पूर्ण तालिका
- लेख: सम्पूर्ण तालिका
- गीता-कविता: हमारे बारे में
- गीता काव्य माधुरी
- बाल गीता
- प्रोफेसर राजीव सक्सेना