Never-ending travel
क्या यही सब साथ मेरे जाएँगे, ऊँघते कस्बे, पुराने पुल? पाँव में लिपटी हुई यह धनुष-सी दुहरी नदी, बींध देगी क्या मुझे बिलकुल?

अंतहीन यात्री – धर्मवीर भारती

There are people who  keep traveling, one place to other. They are constantly seen on airports, train stations. Probably they must travel because of their jobs, but do they really like it?   This poem beautifully conveys the pain of a person on go who must travel endlessly while realizing the futility of it all and yet cannot stop – Rajiv K. Saxena

अंतहीन यात्री

विदा देती एक दुबली बाँह-सी यह मेड़
अंधेरे में छूटते चुपचाप बूढ़े पेड़

ख़त्म होने को ना आएगी कभी क्या
एक उजड़ी माँग-सी यह धूल धूसर राह?

एक दिन क्या मुझी को पी जाएगी
यह सफ़र की प्यास, अबुझ, अथाह?

क्या यही सब साथ मेरे जाएँगे
ऊँघते कस्बे, पुराने पुल?

पाँव में लिपटी हुई यह धनुष-सी दुहरी नदी
बींध देगी क्या मुझे बिलकुल?

∼ धर्मवीर भारती

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