I remember when we were children, our mother used to bathe us in winter mornings with cold water from hand-pump. After that, shivering and wrapped in towels, we used to sit for some time on a charpai in morning winter sun. That feeling of warmth and utter peace was unique indeed. Sarveshwer Dayal Ji recreates that magic of winter sun in this lovely poem – Rajiv Krishna Saxena
धूप ने बुलाया
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।
ताते जल नहा, पहन श्वेत वसन आई
खुले लॉन बैठ गई दमकती लुनाई
सूरज खरगोश धवल गोद उछल आया।
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।
नभ के उद्यानछत्र तले मेघ टीला
पड़ा हरा फूल कढ़ा मेजपोश पीला
वृक्ष खुली पुस्तक हर पृष्ठ फड़फड़ाया
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।
पैरों में मखमल की जूतीसी क्यारी
मेघ ऊन का गोला बुनती सुकुमारी–
डोलती सलाई, हिलता जल लहराया
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।
बोली कुछ नहीं, एक कुरसी की खाली
हाथ बढ़ा छज्जे की छाया सरका ली
बाहं छुड़ा भागा, गिर बर्फ हुई छाया
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।
∼ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
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