Nida Fazli’s poems are amazingly close to real life. Here is a portrait of mother that many would identify as their own. ∼ Rajiv Krishna Saxena
खट्टी चटनी जैसी माँ
बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका–बासन
चिमटा, फुकनी – जैसी माँ!
बान की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोयी–आधी जागी
थकी दुपहरी – जैसी माँ!
चिड़ियों की चहकार में गूँजे
राधा–मोहन, अली–अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुण्डी – जैसी माँ!
बीबी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी–थोड़ी–सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी – जैसी माँ!
बाँट के अपना चेहरा, माथा
आँखें जाने कहाँ गयीं
फटे पुराने इक एलबम में
चंचल लड़की – जैसी माँ!
∼ निदा फ़ाज़ली
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