मेघ आये बड़े बन ठन के, सँवर के – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

Monsoon rains have a special and magical link with the hearts of Indians. It never fails to move us. Here is a lovely interpretation. Sarveshwer Dayal Ji have linkened the advancing clouds to a charismatic visitor returning from city to village after a year – Rajiv K. Saxena

मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के

आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।

पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बांकीचितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।

बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।

क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।

∼ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

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