नाव चली नानी की नाव चली – हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय

नाव चली नानी की नाव चली – हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय

There is something magical about Harindra Nath Chattopadhyay’s poems for children. We often heard them on Alashvani radio in 50s and 60s. A poem entitled “Railgadi” is already on this site. Here is another gem! ‘Nanu ki nani ki nav chali’ became ‘Nina ki nani ki nav chali’ in the famous Ashok Kumar film “Aashirwad” in which Harindra Nath acted also. Those with children must read this poem to them. Rajiv Krishna Saxena

नाव चली नानी की नाव चली

नाव चली
नानी की नाव चली
नीना के नानी की नाव चली
लम्बे सफ़र पेसामान घर से निकाले गये
नानी के घर से निकाले गये
इधर से उधर से निकाले गये
और नानी की नाव में डाले गये(क्या क्या डाले गये)
एक छड़ी, एक घड़ी
एक झाड़ू, एक लाडू
एक सन्दुक, एक बन्दुक
एक तलवार, एक सलवार
एक घोड़े की जीन
एक ढोलक, एक बीन
एक घोड़े की नाल
एक जीवर का जाल
एक लह्सुन, एक आलू
एक तोता, एक भालू
एक डोरा, एक डोरी
एक बोरा, एक बोरी
एक डंडा, एक झंडा
एक हंडा, एक अंडा
एक केला, एक आम
एक पक्का, एक कच्चा
और…
टोकरी में एक बिल्ली का बच्चा
(म्याऊँ म्याऊँ)

फिर एक मगर ने पीछा किया
नानी की नाव का पीछा किया
नीना के नानी की नाव का पीछा किया
(फिर क्या हुआ)

चुपके से, पीछे से
ऊपर से, नीचे से
एक एक सामान खींच लिया
एक बिल्ली का बच्चा
एक केला, एक आम
एक पक्का, एक कच्चा
एक अंडा, एक हंडा
एक झंडा, एक डंडा
एक बोरी, एक बोरा
एक डोरी एक डोरा
एक तोता, एक भालू
एक लह्सुन, एक आलू
एक जीवर का जाल
एक घोड़े की नाल
एक ढोलक, एक बीन
एक घोड़े की जीन
एक तलवार, एक सलवार
एक बन्दुक, एक सन्दुक
एक लाडू, एक साडू
एक छड़ी, एक घड़ी

(मगर नानी क्या कर रही थी)

नानी थी बिचारी बुड्ढी बहरी
नानी की नींद थी इतनी गहरी
इतनी गहरी (कित्ती गहरी)

नदिया से गहरी, दिन दोपहरी
रात की रानी, ठंडा पानी
गरम मसाला, पेट में ताला
साड़े सोला, पंद्रह एका पंद्रह
दूना तीस, तीया पैंतालिस
चौके साठ, पौना पच्चत्तर
छक्के नब्बे, साती पिचलन
आठी बीसा, नबर पतीसा
गले में रस्सा…

∼ हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय

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