What if this Kadamb tree was on the bank of river Yamuna?
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥

यह कदम्ब का पेड़ – सुभद्रा कुमारी चौहान

Introduction:

Here is a moving poem about wishes of a child to climb a tree on the river bank and play a tiny wooden flute to surprise his mother. In this high-tech age of computer games, this poem reminds us how great joy can be derived from simple things in life – Rajiv Krishna Saxena

यह कदम्ब का पेड़

यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥

ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता॥

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता॥

सुन मेरी बंसी को मां तुम इतनी खुश हो जातीं।
मुझे देखने को तुम बाहर काम छोड़ कर आतीं॥

तुम को आता देख बांसुरी रख मैं चुप हो जाता।
पत्तों में छिप कर फिर धीरे से बंसुरी बजाता॥

बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता॥

तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे॥

तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता॥

तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जातीं।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं॥

इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे॥

∼ सुभद्रा कुमारी चौहान

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