Early morning certainly weaves magic and here Roop Narayan Tripathi Ji describes this magic! – Rajiv Krishna Saxena
भोर हुई पेड़ों की बीन बोलने लगी
भोर हुई पेड़ों की बीन बोलने लगी,
पत पात हिले शाख शाख डोलने लगी।
कहीं दूर किरणों के तार झनझ्ना उठे,
सपनो के स्वर डूबे धरती के गान में,
लाखों ही लाख दिये ताारों के खो गए,
पूरब के अधरों की हल्की मुस्कान में।
कुछ ऐसे पूरब के गांव की हवा चली,
सब रंगों की दुनियां आंख खोलने लगी।
जमे हुए धूएं की पहाड़ी है दूर की,
काजल की रेख सी कतार है खजूर की,
सोने का कलश लिये उषा चली आ रही,
माथे पर दमक रही आभा सिंदूर की।
धरती की परियों के सपनीले प्यार में,
नई चेतना नई उमंग बोलने लगी।
कुछ ऐसे भोर की बयार गुनगुना उठी,
अलसाए कोहरे की बाहं सिमटने लगी,
नरम नरम किरणों की नई नई धूप में,
राहों के पेड़ों की छांह लिपटने लगी।
लहराई माटी की धुली धुली चेतना,
फसलों पर चुहचुहिया पंख तोलने लगी।
भोर हुई पेड़ों की बीन बोलने लगी,
पत पात हिले शाख शाख डोलने लगी।
∼ रूप नारायण त्रिपाठी
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