Here is a lovely poem of Bhavani Prasad Mishra on rains…first few drops from the sky and then heavy showers. You need to read it out loud and slowly and see the magic of the flow of language. Rajiv KrishnaSaxena
बूँद टपकी एक नभ से
बूँद टपकी एक नभ से,
किसी ने झुक कर झरोके से
कि जैसे हंस दिया हो,
हंस रही – सी आँख ने जैसे
किसी को कस दिया हो;
ठगा – सा कोई किसी की आँख
देखे रह गया हो,
उस बहुत से रूप को रोमांच रोके
सह गया हो।
बूँद टपकी एक नभ से,
और जैसे पथिक
छू मुस्कान, चौंके और घूमे
आँख उस की, जिस तरह
हंसती हुई – सी आँख चूमे,
उस तरह मै ने उठाई आँख
बादल फट गया था,
चन्द्र पर आता हुआ – सा अभ्र
थाड़ा हट गया था।
बूँद टपकी एक नभ से
ये कि जैसे आँख मिलते ही
झरोका बंद हो ले,
और नूपुर ध्वनि झमक कर,
जिस तरह दुत छंद हो ले,
उस तरह बादल सिमट कर,
चन्द्र पर छाए अचानक,
और पानी के हज़ारों बूँद
तब आये अचानक।
~ भवानी प्रसाद मिश्र
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