Autumn arrives and Harivansh Rai Bachchan, the famous poet, draws a shabd-chitra. Also a metaphor for an old person reaching the end of life – Rajiv Krishna Saxena
है यह पतझड़ की शाम, सखे!
नीलम-से पल्लव टूट गए,
मरकत-से साथी छूट गए,
अटके फिर भी दो पीत पात
जीवन-डाली को थाम, सखे!
है यह पतझड़ की शाम, सखे!
लुक-छिप करके गानेवाली,
मानव से शरमानेवाली
कू-कू कर कोयल माँग रही
नूतन घूँघट अविराम, सखे!
है यह पतझड़ की शाम, सखे!
नंगी डालों पर नीड़ सघन,
नीड़ों में है कुछ-कुछ कंपन,
मत देख, नज़र लग जाएगी;
यह चिड़ियों के सुखधाम, सखे!
है यह पतझड़ की शाम, सखे!
∼ हरिवंश राय बच्चन
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