ज्योति कलश छलके – नरेंद्र शर्मा

ज्योति कलश छलके – नरेंद्र शर्मा

Pandit Narendra Sharma had weaved some real magic in this poem. It was sung with equal fervor by Lata Mangeshkar (see below). It conjures up image of a divine early morning as the sun slowly rises like a Jyoti Kalash and its gentle rays wake up the world beneath – Rajiv Krishna Saxena

ज्योति कलश छलके

ज्योति कलश छलके
हुए गुलाबी लाल सुनहरे
रंग दल बादल के
ज्योति कलश छलके।

घर आंगन बन उपवन उपवन
करती ज्योति अमृत से सिंचन
मंगल घट ढलके
ज्योति कलश छलके।

पात पात बिरवा हरियाला
धरती का मुख हुआ उजाला
सच सपने कल के
ज्योति कलश छलके।

ऊषा ने आंचल फैलाया
फैली सुख की शीतल छाया
नीचे आंगन के
ज्योति कलश छलके।

ज्याति यशोधा धरती मैय्या
नील गगन गोपाल कन्हैय्या
श्यामल छवि झलके
ज्योति कलश छलके।

∼ पंडित नरेंद्र शर्मा

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