कमरे में धूप – कुंवर नारायण

कमरे में धूप – कुंवर नारायण

Here is an amazing interpretation of aandhi followed by clouding of sky, only to clear up by the evening, from the view point of an ordinary sunny room. Lovely poem indeed! Rajiv Krishna Saxena

कमरे में धूप

हवा और दरवाजों में बहस होती रही
दीवारें सुनती रहीं।
धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी
किरणों के ऊन का स्वैटर बुनती रही।

सहसा किसी बात पर बिगड़कर
हवा ने दरवाजे को तड़ से
एक थप्पड़ जड़ दिया।
खिड़कियाँ गरज उठीं‚
अखबार उठ कर खड़ा हो गया
किताबें मुँह बाए देखती रहीं
पानी से भरी सुराही फर्श पर टूट पड़ी
मेज के हाथ से कलम छूट पड़ी

धूप उठी और बिना कुछ कहे
कमरे से बाहर चली गई।

शाम को लौटी तो देखा
एक कोहराम के बाद घर में ख़ामोशी थी
अंगड़ाई लेकर पलंग पर पड़ गई
पड़े पड़े कुछ सोचती रही‚
सोचते सोचते जाने कब सो गई‚
आँख खुली तो देखा सुबह हो गई।

∼ कुंवर नारायण

 

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