Sitting on the river bank, you hear distant sound of flute being played by a Maanjhi (boat man). That melody takes you away from your worldly train of thoughts… Here is a famous poem written by Kedar Nath Agrawal Ji – Rajiv Krishna Saxena
मांझी न बजाओ बंशी
मांझी न बजाओ बंशी मेरा मन डोलता। मेरा मन डोलता जैसे जल डोलता। जल का जहाज जैसे पल पल डोलता। मांझी न बजाओ बंशी‚ मेरा मन डोलता।
मांझी न बजाओ बंशी
मेरा प्रन टूटता‚
मेरा प्रन टूटता
जैसे तृन टूटता‚
तृन का निवास जैसे
वन वन टूटता।
मांझी न बजाओ बंशी‚ मेरा प्रन टूटता।
मांझी न बजाओ बंशी
मेरा तन झूमता।
मेरा तन झूमता है
तेरा तन झूमता‚
मेरा तन तेरा तन
एक बन झूमता‚
मांझी न बजाओ बंशी‚ मेरा तन झूमता
~ केदार नाथ अग्रवाल
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