पगडंडी - प्रयाग शुक्ल

पगडंडी – प्रयाग शुक्ल

A nerrow track in the forest. Where does it go? Rajiv Krishna Saxena

पगडंडी

जाती पगडंडी यह वन को
खींच लिये जाती है मन को
शुभ्र–धवल कुछ–कुछ मटमैली
अपने में सिमटी, पर, फैली।

चली गई है खोई–खोई
पत्तों की मह–मह से धोई
फूलों के रंगों में छिप कर,
कहीं दूर जाकर यह सोई!

उदित चंद्र बादल भी छाए।
किरणों के रथ के रथ आए।
पर, यह तो अपने में खोई
कहीं दूर जाकर यह जागी,
कहीं दूर जाकर यह सोई।

हरी घनी कोई वनखंडी
उस तक चली गई पगडंडी।

~ प्रयाग शुक्ल

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