A famous poem of Shri Harivansh Rai Bachchan. A row of birds fly during a storm (jhanjhawaat). Rajiv Krishna Saxena
प्रबल झंझावात साथी
देह पर अधिकार हारे,
विवशता से पर पसारे,
करुण रव-रत पक्षियों की आ रही है पाँत, साथी!
प्रबल झंझावात, साथी!
शब्द ‘हरहर’, शब्द ‘मरमर’–
तरु गिरे जड़ से उखड़कर,
उड़ गए छत और छप्पर, मच गया उत्पात, साथी!
प्रबल झंझावात, साथी!
हँस रहा संसार खग पर,
कह रहा जो आह भर भर–
‘लुट गए मेरे सलोने नीड़ के तॄण पात।’ साथी!
प्रबल झंझावात, साथी!
∼ हरिवंश राय बच्चन
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