In this lovely poem Prabhakar Machway Ji has drawn a shabd-chitra of a blind beggar singing unmindful of the on-goings in the bazaar – Rajiv Krishna Saxena
रेखा चित्र
सांझ है धुंधली‚ खड़ी भारी पुलिया देख‚
गाता कोई बैठ वाँ‚ अन्ध भिखारी एक।
दिल का विलकुल नेक है‚ करुण गीत की टेक–
“साईं के परिचै बिना अन्तर रहिगौ रेख।”
(उसे काम क्या तर्क से‚ एक कि ब्रह्म अनेक!)
उसकी तो सीधी सहज कातर गहिर गुहारः
चाहे सारा अनसुनी कर जाए संसार!
कोलाहल‚ आवागमन‚ नारी नर बेपार‚
वहीं रूप के हाट में‚ जुटे मनचले यार!
रूपज्वाल पर कई लेते आँखें सेंक–
कई दान के गर्व में देते सिक्के फेंक!
कोई दर्द न गुन सका‚ ठिठका नहीं छिनेक‚
औ’ उस अंधे दीन की‚ रुकी न यकसौं टेक–
“साईं के परिचै बिना अन्तर रहिगौ रेख!”
∼ डॉ. प्रभाकर माचवे
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