A poem is but few words. Its meaning actually explodes in its entire splendor inside our own hearts. This poem of Bachchan brings back to us collective memories of the peaceful stillness of the time as the sun sets and the world prepares to retire for the night – Rajiv Krishna Saxena
साथी साँझ लगी अब होने
फैलाया था जिन्हें गगन में,
विस्तृत वसुधा के कण-कण में,
उन किरणों के अस्ताचल पर पहुँच लगा है सूर्य सँजोने।
साथी, साँझ लगी अब होने!
खेल रही थी धूलि कणों में,
लोट-लिपट गृह-तरु-चरणों में,
वह छाया, देखो जाती है प्राची में अपने को खोने।
साथी, साँझ लगी अब होने!
मिट्टी से था जिन्हें बनाया,
फूलों से था जिन्हें सजाया,
खेल-घरौंदे छोड़ पथों पर चले गए हैं बच्चे सोने।
साथी, साँझ लगी अब होने!
∼ हरिवंश राय बच्चन
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