शुरू हुआ उजियाला होना – हरिवंश राय बच्चन

शुरू हुआ उजियाला होना – हरिवंश राय बच्चन

Here is another poem of Shri Harivansh Rai Bachhan, from the collection “Nisha Nimantran”. In the last stanza, the poet calls those homes happy where sound of little children is heard early in the morning. Rajiv Krishna Saxena

शुरू हुआ उजियाला होना

हटता जाता है नभ से तम
संख्या तारों की होती कम
उषा झांकती उठा क्षितिज से बादल की चादर का कोना
शुरू हुआ उजियाला होना

ओस कणों से निर्मल–निर्मल
उज्ज्वल–उज्ज्वल, शीतल–शीतल
शुरू किया प्र्रातः समीर ने तरु–पल्लव–तृण का मुँह धोना
शुरू हुआ उजियाला होना

किसी बसे द्र्रुम की डाली पर
सद्यः जाग्र्रत चिड़ियों का स्वर
किसी सुखी घर से सुन पड़ता है नन्हें बच्चों का रोना
शुरू हुआ उजियाला होना

हरिवंश राय बच्चन

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