मंजिल दूर नहीं है वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है चिनगारी बन गयी लहू की बूंद गिरी जो पग से, चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण चिन्ह जगमग से। शुरू हुई आराध्य भूमि यह, क्लांत नहीं रे …
Read More »जीवन के रेतीले तट पर – अजित शुकदेव
We all have to tread on our own paths in life. It is better to do so with a smile on the face even though untold sorrows lurk inside. Here is a nice poem by Ajit Shukdev – Rajiv Krishna Saxena जीवन के रेतीले तट पर जीवन के रेतीले तट …
Read More »पंद्रह अगस्त: 1947 – गिरिजा कुमार माथुर
Here is a famous poem that was written by the well known poet Girija Kumar Mathur at the time when India got independence. The poem is still relevant today. Rajiv Krishna Saxena पंद्रह अगस्त: 1947 आज जीत की रात पहरुए सावधान रहना! खुले देश के द्वार अचल दीपक समान रहना! …
Read More »हर घट से – गोपाल दास नीरज
This is a famous poem of Niraj. One has to be selective in life, put in sustained efforts and be patient in order to succeed. Rajiv Krishna Saxena हर घट से हर घट से अपनी प्यास बुझा मत ओ प्यासे! प्याला बदले तो मधु ही विष बन जाता है! हैं …
Read More »भर दिया जाम – बालस्वरूप राही
A life of desperation and one hardly sees a point of keep living. But enter love and the things don’t look so bad anymore… Rajiv Krishna Saxena भर दिया जाम भर दिया जाम जब तुमने अपने हाथों से प्रिय! बोलो, मैं इन्कार करूं भी तो कैसे! वैसे तो मैं कब …
Read More »