A village beauty pining for her love. Simple and uncomplicated thinking, old memories and a sense of loss. A lovely poem by Dharamvir Bharti Ji. Rajiv Krishna Saxena फागुन की शाम घाट के रस्ते, उस बँसवट से इक पीली–सी चिड़िया, उसका कुछ अच्छा–सा नाम है! मुझे पुकारे! ताना मारे, भर …
Read More »बांसुरी दिन की – माहेश्वर तिवारी
Here is a nice poetic interpretation of a quiet day in forest and natural outdoors. Rajiv Krishna Saxena बांसुरी दिन की होंठ पर रख लो उठा कर बांसुरी दिन की देर तक बजते रहें ये नदी, जंगल, खेत कंपकपी पहने खड़े हों दूब, नरकुल, बेंत पहाड़ों की हथेली पर धूप …
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