Most of our lives are hum-drum. There are few moments of elation and stretches of depression. Meeting the love is a super special event, and that unique night gets ingrained in memory as one of the highest notes of life. Here is a lovely poem by Chiranjeet – Rajiv Krishna …
Read More »तुम कितनी सुंदर लगती हो: धर्मवीर भारती
तुम कितनी सुंदर लगती हो तुम कितनी सुंदर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास! ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खंडहर के आसपास मदभरी चांदनी जगती हो! मुख पर ढंक लेती हो आंचल ज्यों डूब रहे रवि पर बादल‚ या दिनभर उड़ कर थकी किरन‚ सो जाती हो …
Read More »रूप के बादल – गोपी कृष्ण गोपेश
Encounter with beauty takes mind away from pain and anticipations start… Here is a poem by well known poet Gopi Krishan Gopesh. Rajiv Krishna Saxena रूप के बादल रूप के बादल यहाँ बरसे, कि यह मन हो गया गीला! चाँद–बदली में छिपा तो बहुत भाया ज्यों किसी को फिर किसी …
Read More »प्यार का नाता हमारा – विनोद तिवारी
There are billions of men and women on this world, but magical link of love between a man and woman is the only worth-while link that transforms. Rajiv Krishna Saxena प्यार का नाता हमारा जिंदगी के मोड़ पर यह प्यार का नाता हमारा राह की वीरानियों को मिल गया आखिर …
Read More »ठहर जाओ – रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’
How the sight of the lover lights up one’s heart! Hera is a lovely poem by Rameshwer Shukla Anchal. Rajiv Krishna Saxena ठहर जाओ ठहर जाओ, घड़ी भर और तुमको देख लें आँखें। अभी कुछ देर मेरे कान में गूंजे तुम्हारा स्वर बहे प्रतिरोग में मेरे सरस उल्लास का निर्झर, बुझे …
Read More »तुमको रुप का अभिमान – रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’
A woman is proud of her beauty but her lover is proud of his love and dedication to her. She is like the full moon but his feelings are like the perturbation in deep sea. This poem compares the two. Rajiv Krishna Saxena तुमको रुप का अभिमान तुमको रुप का …
Read More »तुम्हारी उम्र वासंती – दिनेश प्रभात
Here is a lovely and romantic poem in praise of love. Enjoy the imagination of the poet. Rajiv Krishna Saxena तुम्हारी उम्र वासंती लिखी हे नाम यह किसके, तुम्हारी उम्र वासंती? अधर पर रेशमी बातें, नयन में मखमली सपने। लटें उन्मुक्तसी होकर, लगीं ऊंचाइयाँ नपनें। शहर में हैं सभी निर्थन, …
Read More »मेहंदी लगाया करो – विष्णु सक्सेना
Here is the utterings of a lovelorn man praising to sky the beauty of his love. Rajiv Krishna Saxena मेहंदी लगाया करो दूिधया हाथ में, चाँदनी रात में, बैठ कर यूँ न मेंहदी रचाया करो। और सुखाने के करके बहाने से तुम इस तरह चाँद को मत जलाया करो। जब …
Read More »अभी तो झूम रही है रात – गिरिजा कुमार माथुर
Kajal in eyes and a little shyness… Here is a lovely poem by the well known poet Girija Kumar Mathur. Rajiv Krishna Saxena अभी तो झूम रही है रात बडा काजल आँजा है आज भरी आखों में हलकी लाज। तुम्हारे ही महलों में प्रान जला क्या दीपक सारी रात निशा …
Read More »आकुल अंतर – हरिवंश राय बच्चन
Internal turmoil of a being may outwardly be seen as an entirely different phenomenon. In reality however, the outward manifestation is just a byproduct of the internal turmoil. Beautifully expressed in this well-known poem of Harivansh Rai Bachchan. Rajiv Krishna Saxena आकुल अंतर लहर सागर का नहीं श्रृंगार, उसकी विकलता …
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