A little kid in a poverty stricken family… makes natural child-like impulsive demands. Then by experience, learns to scale them down. Rajiv Krishna Saxena अनुभव परिपक्व माँ हम नहीं मानते – अगली दीवाली पर मेले से हम वह गाने वाला टीन का लट्टू लेंगे ही लेंगे – नहीं, हम नहीं …
Read More »आठवाँ आने को है – अल्हड़ बीकानेरी
Here is a Hasya Kavita by Alhad Bikaneri. Rant of a disillusion groom who is expecting his eighth child. Rajiv Krishna Saxena आठवाँ आने को है मंत्र पढ़वाए जो पंडित ने, वे हम पढ़ने लगे, यानी ‘मैरिज’ की क़ुतुबमीनार पर चढ़ने लगे। आए दिन चिंता के फिर दौरे हमें, पड़ने …
Read More »बाल कविता – सीखा हमने – परशुराम शुक्ल
What do we learn from Nature? From earth and sun? Here Parshuram Shukl tells all children. Rajiv Krishna Saxena बाल कविता – सीखा हमने धरती से सीखा है हमने सबका बोझ उठाना और गगन से सीखा हमने ऊपर उठते जाना सूरज की लाली से सीखा जग आलोकित करना चंदा की …
Read More »बोलो माँ – अंजना भट्ट
Here is excerpt from a very emotional poem by Anjana Bhatt that brings forth the fear all children have of losing their mothers. It would moisten the eyes of many readers. Rajiv Krishna Saxena बोलो माँ तिनका तिनका जोड़ा तुमने अपना घर बनाया तुमने, अपने तन के सुंदर पौधे पर …
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