When would it rain? The eternal question is posed in this excerpt from a poem written by Bekal Utsahi. Rajiv Krishna Saxena कब बरसेगा पानी सावन भादों साधू हो गये बादल सब सन्यासी पछुआ चूस गयी पुरबा को धरती रह गयी प्यासी फ़सलों ने बैराग ले लिया जोगिया हो गई …
Read More »रिम झिम बरस रहा है पानी – राजीव कृष्ण सक्सेना
रिम झिम बरस रहा है पानी गड़ गड़ गड़ गड़ गरज गरज घन चम चम चमक बिजुरिया के संग ढम ढम ढम ढम पिटा ढिंढोरा झूम उठा सारा जन जीवन उमड़ घुमड़ कर मेघों नें अब आंधी …
Read More »एक बूंद – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
Here is the story of a rain drop, apprehensive and scared of being destroyed. Instead, it falls into a seepi and turns in a pearl. A simple, effective and moving poem that assuages the fear of unknown in us when we embark in a new activity or start a new …
Read More »रूप के बादल – गोपी कृष्ण गोपेश
Encounter with beauty takes mind away from pain and anticipations start… Here is a poem by well known poet Gopi Krishan Gopesh. Rajiv Krishna Saxena रूप के बादल रूप के बादल यहाँ बरसे, कि यह मन हो गया गीला! चाँद–बदली में छिपा तो बहुत भाया ज्यों किसी को फिर किसी …
Read More »सूरज भाई – इंदिरा गौड़
Here is a sweet little children’s poem on the Sun. Rajiv Krishna Saxena सूरज भाई क्या कहने हैं सूरज भाई अच्छी खूब दुकान सजाई और दिनों की तरह आज भी जमा दिया है खूब अखाड़ा पहले किरणों की झाड़ू से घना अँधेरा तुमने झाड़ा फिर कोहरे को पोंछ उषा की …
Read More »पुरबा जो डोल गई – शिवबहादुर सिंह भदौरिया
Purbaa (eastern winds) is the harbinger of rains to follow and that changes the atmosphere in a village. This is beautifully depicted in this lovely poem of Shiv Bahadur Singh Bhadoriya. Pure rural ethos of the words is exhilarating! Rajiv Krishna Saxena पुरबा जो डोल गई घटा घटा आँगन में …
Read More »पक्षी और बादल – रामधारी सिंह दिनकर
Borders between nations are man-made. Nature however has no regards for these borders. Dinker Ji puts is very well in this poem. Rajiv Krishna Saxena पक्षी और बादल पक्षी और बादल ये भगवान के डाकिये हैं, जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं। हम तो समझ नहीं पाते …
Read More »हम न रहेंगे – केदार नाथ अग्रवाल
The life goes on, even after we leave. In all its colors and glory, the life goes on. Rajiv Krishna Saxena हम न रहेंगे हम न रहेंगे तब भी तो यह खेत रहेंगे, इन खेतों पर घन लहराते शेष रहेंगे, जीवन देते प्यास बुझाते माटी को मदमस्त बनाते श्याम बदरिया …
Read More »वर्षा के मेघ कटे – गोपी कृष्ण गोपेश
A very nice poem that describes the scene after the rain. Rajiv Krishna Saxena वर्षा के मेघ कटे वर्षा के मेघ कटे – रहे–रहे आसमान बहुत साफ़ हो गया है, वर्षा के मेघ कटे! पेड़ों की छाँव ज़रा और हरी हो गई है, बाग़ में बग़ीचों में और तरी हो …
Read More »बोआई का गीत – धर्मवीर भारती
Here again is magic of Bharti Ji. Look at the choice of words and the overall image this poem conjures up. Rajiv Krishna Saxena बोआई का गीत गोरी-गोरी सौंधी धरती-कारे-कारे बीज बदरा पानी दे! क्यारी-क्यारी गूंज उठा संगीत बोने वालो! नई फसल में बोओगे क्या चीज ? बदरा पानी दे! …
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