Here is an old gem! Many readers requested for this lovely poem depicting the birth and flow of a river – Rajiv Krishna Saxena यह लघु सरिता का बहता जल यह लघु सरिता का बहता जल‚ कितना शीतल‚ कितना निर्मल। हिमगिरि के हिम निकल–निकल‚ यह विमल दूध–सा हिम का जल‚ …
Read More »मचा तहलका – उमा कांत मालवीय
A nice little poem for children by Uma Kant Malaviya. Rajiv Krishna Saxena मचा तहलका बैठ पेड़ पर मछली सोचे अब क्या होगा राम, नज़ला हुआ मगर मामा को मुझको हुआ जु.काम। छाँय छाँय कर मेढक जी ने छींका क्या दो बार, पोखर भर में मचा तहलका मेढक जी बीमार। …
Read More »जहाँ मैं हूँ – बुद्धिसेन शर्मा
Society is changing and restlessness is increasing. We have to somehow cope with the change. Rajiv Krishna Saxena जहाँ मैं हूँ अजब दहशत में है डूबा हुआ मंजर, जहाँ मैं हूँ धमाके गूंजने लगते हैं, रह-रहकर, जहाँ मैं हूँ कोई चीखे तो जैसे और बढ़ जाता है सन्नाटा सभी के …
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