Nothing works at times and the feeling of frustration is overbearing. Here is a nice poem by Narendra Chanchal- Rajiv Krishna Saxena दरवाज़े बंद मिले बार–बार चिल्लाया सूरज का नाम जाली में बांध गई केसरिया शाम दर्द फूटना चाहा अनचाहे छंद मिले दरवाज़े बंद मिले। गंगाजल पीने से हो गया …
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