In this poem, Pratibha Saxena gives a magical commentary of dusk turning to night and then into early morning dawn. Imagery is delightful. Enjoy. सद्य स्नाता झकोर–झकोर धोती रही, संवराई संध्या, पश्चिमी घात के लहराते जल में, अपने गौरिक वसन, फैला दिये क्षितिज की अरगनी पर और उत्तर गई गहरे …
Read More »फूटा प्रभात – भारत भूषण अग्रवाल
Breaking of dawn is a magical moment. Here is a lovely poem of Shri Bharat Bhushan Agrawal describing this magic. – Rajiv Krishna Saxena फूटा प्रभात फूटा प्रभात‚ फूटा विहान बह चले रश्मि के प्राण विहग के गान मधुर निर्झर के स्वर झर–झर‚ झर–झर। प्राची का अरुणाभ क्षितिज‚ मानो अंबर …
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