Tag Archives: diya

दीवाली आने वाली है – राजीव कृष्ण सक्सेना

दीवाली आने वाली है - राजीव कृष्ण सक्सेना

दीवाली आने वाली है मानसून काफूर हो गया रावण का भी दहन हो गया ठंडी–ठंडी हवा चली है मतवाली अब गली–गली है पापा, मम्मी, भैय्या, भाभी बूआ, चाचा, दादा, दादी राह सभी तकते हैं मिल कर हर मन को भाने वाली है दीवाली आने वाली है चॉकलेट को छोड़ो भाई …

Read More »

नींद की पुकार – वीरबाला

Waking up suddenly from deep sleep. Why!?

Life is short and expectations could be big. Real pain is felt if one knows that one deserves a much better deal, but is there any one out there who is listening to the silent pleas constantly emerging from your heart, and doing something about it? Or there is no …

Read More »

हो चुका खेल – राजकुमार

हो चुका खेल – राजकुमार

As the life draws to a close, a feeling of detachment must arise towards all that was done or achieved, as it is time to go. Here is a moving poem by Raj Kumar Ji about this feeling. Rajiv Krishna Saxena हो चुका खेल हो चुका खेल थक गए पांव …

Read More »

टल नही सकता – कुंवर बेचैन

टल नही सकता – कुंवर बेचैन

Here are some touching verses from Kunwar Bechain. They point out to the inadequacies in all of us. Rajiv Krishna Saxena टल नही सकता मैं चलते – चलते इतना थक  गया हूँ, चल नही सकता मगर मैं सूर्य हूँ, संध्या से पहले ढल नही सकता कोई जब रौशनी देगा, तभी …

Read More »