Here is a lovely poem of Dr. Dharamvir Bharati. Rajiv Krishna Saxena नवंबर की दोपहर अपने हलके–फुलके उड़ते स्पर्शों से मुझको छू जाती है जार्जेट के पीले पल्ले सी यह दोपहर नवंबर की। आयीं गयीं ऋतुएँ‚ पर वर्षों से ऐसी दोपहर नहीं आयी जो क्ंवारेपन के कच्चे छल्ले–सी इस मन …
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