Tag Archives: enthuse

पीथल और पाथल – कन्हैयालाल सेठिया

Haldighati battle

You may have read Shyam Narayan Pandey’s classic epic “Haldighati”. Three excerpts from that great work are available on this site. Many readers had asked me to include a Rajasthani classic poem on the same theme by the great poet Kanhaiyalal Sethia, but I could not find that poem any …

Read More »

मंजिल दूर नहीं है: रामधारी सिंह दिनकर

मंजिल दूर नहीं है – रामधारी सिंह दिनकर

मंजिल दूर नहीं है वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है चिनगारी बन गयी लहू की बूंद गिरी जो पग से, चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण चिन्ह जगमग से। शुरू हुई आराध्य भूमि यह, क्लांत नहीं रे …

Read More »

जाग तुझको दूर जाना – महादेवी वर्मा

Wake up! You have to leave!!

In this Jeevan-Path one has to go on in spite of innumerable difficulties, distractions and worldly attachments. Here is a lovely poem by Mahadevi Verma – Rajiv Krishna Saxena जाग तुझको दूर जाना   चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! जाग तुझको दूर जाना! अचल हिमगिरि के हॄदय …

Read More »

विजयी के सदृश जियो रे – रामधारी सिंह दिनकर

विजयी के सदृश जियो रे – रामधारी सिंह दिनकर

World is run by people who live a life full of actions. Geeta teaches Karma-yoga to us. The same thought prevails in this poem by Dinkar. It is one of those poems that fill us with enthusiasm and a will to achieve some thing in life. Only Ramdhari Singh Dinkar …

Read More »

हिमाद्रि तुंग शृंग से – जयशंकर प्रसाद

हिमाद्रि तुंग शृंग से – जयशंकर प्रसाद

Here is an old classic inspirational poem by Jay Shankar Prasad – Rajiv Krishna Saxena हिमाद्रि तुंग शृंग से हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती– स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती– ‘अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!’ असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण …

Read More »