We all have to tread on our own paths in life. It is better to do so with a smile on the face even though untold sorrows lurk inside. Here is a nice poem by Ajit Shukdev – Rajiv Krishna Saxena जीवन के रेतीले तट पर जीवन के रेतीले तट …
Read More »मुझे अकेला ही रहने दो – ठाकुर गोपाल शरण सिंह
Sometimes we get fed up with every thing in this world. Nothing matters any more. One tends to be indifferent to pleasure or pain at that time. Here is a nice poem by Thakur Gopal Sharan Singh. Rajiv Krishna Saxena मुझे अकेला ही रहने दो रहने दो मुझको निर्जन में …
Read More »फूटा प्रभात – भारत भूषण अग्रवाल
Breaking of dawn is a magical moment. Here is a lovely poem of Shri Bharat Bhushan Agrawal describing this magic. – Rajiv Krishna Saxena फूटा प्रभात फूटा प्रभात‚ फूटा विहान बह चले रश्मि के प्राण विहग के गान मधुर निर्झर के स्वर झर–झर‚ झर–झर। प्राची का अरुणाभ क्षितिज‚ मानो अंबर …
Read More »हर घट से – गोपाल दास नीरज
This is a famous poem of Niraj. One has to be selective in life, put in sustained efforts and be patient in order to succeed. Rajiv Krishna Saxena हर घट से हर घट से अपनी प्यास बुझा मत ओ प्यासे! प्याला बदले तो मधु ही विष बन जाता है! हैं …
Read More »पगडंडी – प्रयाग शुक्ल
A nerrow track in the forest. Where does it go? Rajiv Krishna Saxena पगडंडी जाती पगडंडी यह वन को खींच लिये जाती है मन को शुभ्र–धवल कुछ–कुछ मटमैली अपने में सिमटी, पर, फैली। चली गई है खोई–खोई पत्तों की मह–मह से धोई फूलों के रंगों में छिप कर, कहीं दूर …
Read More »मेहंदी लगाया करो – विष्णु सक्सेना
Here is the utterings of a lovelorn man praising to sky the beauty of his love. Rajiv Krishna Saxena मेहंदी लगाया करो दूिधया हाथ में, चाँदनी रात में, बैठ कर यूँ न मेंहदी रचाया करो। और सुखाने के करके बहाने से तुम इस तरह चाँद को मत जलाया करो। जब …
Read More »जनम दिन – गोपाल दास नीरज
Here is an excerpt from a poem expressing the wishes of a poor poet for his love on her birthday. Rajiv Krishna Saxena जनम दिन आज है तेरा जनम दिन, तेरी फुलबगिया में फूल एक और खिल गया है किसी माली का आज की रात तेरी उम्र के कच्चे घर …
Read More »हवाएँ ना जाने – परमानन्द श्रीवास्तव
It is tempting to follow things that entice. But where would that lead us? Rajiv Krishna Saxena हवाएँ ना जाने हवाएँ ना जाने कहाँ ले जाएँ। यह हँसी का छोर उजला यह चमक नीली कहाँ ले जाए तुम्हारी आँख सपनीली चमकता आकाश–जल हो चाँद प्यारा हो फूल–जैसा तन, सुरभि सा …
Read More »दो दिन ठहर जाओ – रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’
Here is another pleading for the love to stay for some more time. Rajiv Krishna Saxena दो दिन ठहर जाओ अभी ही तो लदी ही आम की डाली, अभी ही तो बही है गंध मतवाली; अभी ही तो उठी है तान पंचम की, लगी अलि के अधर से फूल की …
Read More »बातें – धर्मवीर भारती
Here is Dharamvir Bharati’s description of talks that never end between two new lovers. Dedicated to all lovers on this Valentine ’s Day. Rajiv Krishna Saxena बातें सपनों में डूब–से स्वर में जब तुम कुछ भी कहती हो मन जैसे ताज़े फूलों के झरनों में घुल सा जाता है जैसे …
Read More »