Here is an old gem! Many readers requested for this lovely poem depicting the birth and flow of a river – Rajiv Krishna Saxena यह लघु सरिता का बहता जल यह लघु सरिता का बहता जल‚ कितना शीतल‚ कितना निर्मल। हिमगिरि के हिम निकल–निकल‚ यह विमल दूध–सा हिम का जल‚ …
Read More »उग आया है चाँँद – नरेंद्र शर्मा
Here is a lovely description of moon rising over a quiet forest. Rajiv Krishna Saxena उग आया है चाँँद सूरज डूब गया बल्ली भर – सागर के अथाह जल में। एक बाँँस भर उग आया है – चाँद‚ ताड़ के जंगल में। अगणित उँगली खोल‚ ताड़ के पत्र‚ चाँदनीं में …
Read More »पगडंडी – प्रयाग शुक्ल
A nerrow track in the forest. Where does it go? Rajiv Krishna Saxena पगडंडी जाती पगडंडी यह वन को खींच लिये जाती है मन को शुभ्र–धवल कुछ–कुछ मटमैली अपने में सिमटी, पर, फैली। चली गई है खोई–खोई पत्तों की मह–मह से धोई फूलों के रंगों में छिप कर, कहीं दूर …
Read More »बांसुरी दिन की – माहेश्वर तिवारी
Here is a nice poetic interpretation of a quiet day in forest and natural outdoors. Rajiv Krishna Saxena बांसुरी दिन की होंठ पर रख लो उठा कर बांसुरी दिन की देर तक बजते रहें ये नदी, जंगल, खेत कंपकपी पहने खड़े हों दूब, नरकुल, बेंत पहाड़ों की हथेली पर धूप …
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