Tag Archives: Geet

चल उठ नेता – अशोक अंजुम

चल उठ नेता - अशोक अंजुम

In today’s political environment we see huge corruption all around. Retaining power by all means is the norm. Here is a poetic articulation of the situation by Ashok Anjum. Rajiv Krishna Saxena चल उठ नेता चल उठ नेता तू छेड़ तान! क्या राष्ट्रधर्म? क्या संविधान? तू नये ­नये हथकंडे ला! …

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बूँद टपकी एक नभ से – भवानी प्रसाद मिश्र

बूँद टपकी एक नभ से - भवानी प्रसाद मिश्र

Here is a lovely poem of Bhavani Prasad Mishra on rains…first few drops from the sky and then heavy showers. You need to read it out loud and slowly and see the magic of the flow of language. Rajiv KrishnaSaxena बूँद टपकी एक नभ से बूँद टपकी एक नभ से, …

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अभी तो झूम रही है रात – गिरिजा कुमार माथुर

अभी तो झूम रही है रात - गिरिजा कुमार माथुर

Kajal in eyes and a little shyness… Here is a lovely poem by the well known poet Girija Kumar Mathur. Rajiv Krishna Saxena अभी तो झूम रही है रात बडा काजल आँजा है आज भरी आखों में हलकी लाज। तुम्हारे ही महलों में प्रान जला क्या दीपक सारी रात निशा …

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वो आदमी नहीं है – दुष्यंत कुमार

वो आदमी नहीं है - दुष्यंत कुमार

Dushyant Kumar’s poetry is restless and points to gross injustice and absurdities in society. Here is another example. Rajiv Krishna Saxena वो आदमी नहीं है वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है, माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है। वे कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तगू, मैं क्या …

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उठो स्वदेश के लिये – क्षेमचंद सुमन

उठो स्वदेश के लिये - क्षेमचंद सुमन

Here is a great poem from which inspiration may be derived. Auther is the well-known poet Kshem Chand Suman. Rajiv Krishna Saxena उठो स्वदेश के लिये उठो स्वदेश के लिये बने कराल काल तुम उठो स्वदेश के लिये बने विशाल ढाल तुम उठो हिमाद्रि श्रंग से तुम्हे प्रजा पुकारती उठो …

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तू बावन बरस की, मैं बासठ बरस का- जेमिनी हरियाणवी

Madhumas (youthful passion) lasts for a short time. Couples get aged and the whole scenario changes. Here is a funny interpretation by Jamini Hariyanvi. Rajiv KrishnaSaxena तू बावन बरस की, मैं बासठ बरस का तू बावन बरस की, मैं बासठ बरस का न कुछ तेरे बस का, न कुछ मेरे …

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सुप्रभात – प्रभाकर शुक्ल

Early morning has some magical moments when darkness give way to early diffused rays of light. The word starts to wake up slowly. Here is a poem describing the scene. Rajiv Krishna Saxena सुप्रभात नयन से नयन का नमन हो रहा है, लो उषा का आगमन हो रहा है। परत …

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पुनः स्मरण – दुष्यंत कुमार

पुनः स्मरण - दुष्यंत कुमार

Here is another great poem from Dushyant Kumar. Pathos in the poem is palpable. Rajiv Krishna Saxena पुनः स्मरण आह सी धूल उड़ रही है आज चाह–सा काफ़िला खड़ा है कहीं और सामान सारा बेतरतीब दर्द–सा बिन–बँधे पड़ा है कहीं कष्ट सा कुछ अटक गया होगा मन–सा राहें भटक गया …

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क्षुद्र की महिमा – श्यामनंदन किशोर

क्षुद्र की महिमा - श्यामनंदन किशोर

Elements in absolutely pure form do not have the utility that comes after a bit of impurity is mixed with them. Thus pure gold cannot be used for making a necklace, but some base metal has to be mixed in it in order to make it usable for jewelry. Similarly, …

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राही के शेर – बालस्वरूप राही

राही के शेर - बालस्वरूप राही

Baal Swaroop Rahi is a very well-known poet of Hindi and Urdu. Here are some selected verses. Rajiv Krishna Saxena राही के शेर किस महूरत में दिन निकलता है, शाम तक सिर्फ हाथ मलता है। दोस्तों ने जिसे डुबोया हो, वो जरा देर में संभलता है। हमने बौनों की जेब …

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