First day of the New Year! Here are some suggested resolutions from Hullad Muradabadi. Rajiv Krishna Saxena साल आया है नया यार तू दाढ़ी बढ़ा ले, साल आया है नया नाई के पैसे बचा ले, साल आया है नया। तेल कंघा पाउडर के खर्च कम हो जाएँगे आज ही सर …
Read More »राह कौन सी जाऊं मैं – अटल बिहारी वाजपेयी
There are dilemmas in life at every step. What to do? Which alternative to choose? And there are no authentic and correct answers. We must nonetheless make a choice. Rajiv Krishna Saxena राह कौन सी जाऊं मैं चौराहे पर लुटता चीर‚ प्यादे से पिट गया वजीर‚ चलूं आखिरी चाल कि …
Read More »जैसे तुम सोच रहे साथी – विनोद श्रीवास्तव
Living life appears very stressful and distressful at times. However in perspective things are never so bad or good as they appear. Rajiv Krishna Saxena जैसे तुम सोच रहे साथी जैसे तुम सोच रहे वैसे आज़ाद नहीं हैं हम। पिंजरे जैसी इस दुनिया में पंछी जैसा ही रहना है …
Read More »मैं फिर अकेला रह गया – दिनेश सिंह
Someone leaves and someone is left behind lonely and crushed. Here is a lovely poem by Dinesh Singh. Rajiv Krishna Saxena मैं फिर अकेला रह गया बीते दिसंबर तुम गए लेकर बरस के दिन नए पीछे पुराने साल का जर्जर किला था ढह गया मैं फिर अकेला रह गया …
Read More »कुँआरी मुट्ठी – कन्हैया लाल सेठिया
War has an important role in Nation building. A nation that has not experienced war becomes weaker. War ensures peace. This is the perspective on war provided by the well-known poet Kanhaiyalal Sethia. Rajiv Krishna Saxena कुँआरी मुट्ठी युद्ध नहीं है नाश मात्र ही युद्ध स्वयं निर्माता है. लड़ा न …
Read More »सपन न लौटे – उदय भान मिश्र
Uday Bhan Mishra Ji here explores the termoil of heart while one aims at fulfilling te dreams. – Rajiv Krishna Saxena सपन न लौटे बहुत देर हो गई सुबह के गए अभी तक सपन न लौटे जाने क्या बात है दाल में कुछ काला है शायद उल्कापात कहीं होने वाला …
Read More »पलायन संगीत – राजीव कृष्ण सक्सेना
At times life looks quite absurd and pointless. At those times, one feels trapped in existence and pines for a release. Here is an argument for escape at such times. Rajiv Krishna Saxena पलायन संगीत अनगिनित लोग हैं कार्यशील इस जग में अनगिनित लोग चलते जीवन के मग में अनगिनित …
Read More »नाव चली नानी की नाव चली – हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय
There is something magical about Harindra Nath Chattopadhyay’s poems for children. We often heard them on Alashvani radio in 50s and 60s. A poem entitled “Railgadi” is already on this site. Here is another gem! ‘Nanu ki nani ki nav chali’ became ‘Nina ki nani ki nav chali’ in the …
Read More »मुस्कुराने के लिए – हुल्लड़ मुरादाबादी
Some nice couplets from Hullad Muradabadi that remind us of some tough facts of life but nonetheless exhorts us to keep smiling. Rajiv Krishna Saxena. मुस्कुराने के लिए मसखरा मशहूर है, आँसू बहाने के लिए बाँटता है वो हँसी, सारे ज़माने के लिए। जख्म सबको मत दिखाओ, लोग छिड़केंगे नमक …
Read More »मेरा उसका परिचय इतना – अंसार कंबरी
How much two lovers complement each other? Find in this poem. Rajiv Krishna Saxena मेरा उसका परिचय इतना मेरा उसका परिचय इतना वो नदिया है, मैं मरुथल हूँ। उसकी सीमा सागर तक है मेरा कोई छोर नहीं है मेरी प्यास चुरा ले जाए ऐसा कोई चोर नहीं है। मेरा उसका …
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