Remembering the love of his life, here is a lovely poem of Kishan Saroj. Rajiv Krishna Saxena याद आये याद आये फिर तुम्हारे केश मन–भुवन में फिर अंधेरा हो गया पर्वतों का तन घटाओं ने छुआ, घाटियों का ब्याह फिर जल से हुआ; याद आये फिर तुम्हारे नैन, देह मछरी, …
Read More »बे-जगह – अनामिका
A very powerful poem indeed, by Anamika. Especially relevant to Indian situation where a traditional marginalized position of women in society is now changing, especially in educated urban families. Rajiv Krishna Saxena बे-जगह अपनी जगह से गिर कर कहीं के नहीं रहते केश, औरतें और नाखून अन्वय करते थे किसी …
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