Tag Archives: Hindi Poetry

निर्वाण षटकम् – आदि शंकराचार्य

निर्वाण षटकम् मनोबुद्धय्हंकार चित्तानि नाहं श्रोत्रजिव्हे न च घ्राणनेत्रे न च व्योमभूमिर्न तेजो न वायुः चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम। 1 मैं  न तो मन हूं‚ न बुद्धि‚ न अहांकार‚ न ही चित्त हूं मैं न तो कान हूं‚ न जीभ‚ न नासिका‚ न ही नेत्र हूं मैं न तो आकाश हूं‚ …

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सपन न लौटे – उदय भान मिश्र

Uday Bhan Mishra Ji here explores the termoil of heart while one aims at fulfilling te dreams. – Rajiv Krishna Saxena सपन न लौटे बहुत देर हो गई सुबह के गए अभी तक सपन न लौटे जाने क्या बात है दाल में कुछ काला है शायद उल्कापात कहीं होने वाला …

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पलायन संगीत – राजीव कृष्ण सक्सेना

At times life looks quite absurd and pointless. At those times, one feels trapped in existence and pines for a release. Here is an argument for escape at such times. Rajiv Krishna Saxena पलायन संगीत अनगिनित लोग हैं कार्यशील इस जग में अनगिनित लोग चलते जीवन के मग में अनगिनित …

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फागुन की शाम – धर्मवीर भारती

फागुन की शाम - धर्मवीर भारती

A village beauty pining for her love. Simple and uncomplicated thinking, old memories and a sense of loss. A lovely poem by Dharamvir Bharti Ji. Rajiv Krishna Saxena फागुन की शाम घाट के रस्ते, उस बँसवट से इक पीली–सी चिड़िया, उसका कुछ अच्छा–सा नाम है! मुझे पुकारे! ताना मारे, भर …

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एक कण दे दो न मुझको – अंचल

Here is a prayer from heart to Devta. Oh Lord, you are all-mighty and are able to do anything, Give me too, a tiny morsel of my wish. Rajiv Krishna Saxena एक कण दे दो न मुझको तुम गगन–भेदी शिखर हो मैं मरुस्थल का कगारा फूट पाई पर नहीं मुझमें …

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दो दिन ठहर जाओ – रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’

दो दिन ठहर जाओ - रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल’

Here is another pleading for the love to stay for some more time. Rajiv Krishna Saxena दो दिन ठहर जाओ अभी ही तो लदी ही आम की डाली, अभी ही तो बही है गंध मतवाली; अभी ही तो उठी है तान पंचम की, लगी अलि के अधर से फूल की …

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चल उठ नेता – अशोक अंजुम

चल उठ नेता - अशोक अंजुम

In today’s political environment we see huge corruption all around. Retaining power by all means is the norm. Here is a poetic articulation of the situation by Ashok Anjum. Rajiv Krishna Saxena चल उठ नेता चल उठ नेता तू छेड़ तान! क्या राष्ट्रधर्म? क्या संविधान? तू नये ­नये हथकंडे ला! …

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बूँद टपकी एक नभ से – भवानी प्रसाद मिश्र

बूँद टपकी एक नभ से - भवानी प्रसाद मिश्र

Here is a lovely poem of Bhavani Prasad Mishra on rains…first few drops from the sky and then heavy showers. You need to read it out loud and slowly and see the magic of the flow of language. Rajiv KrishnaSaxena बूँद टपकी एक नभ से बूँद टपकी एक नभ से, …

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अभी तो झूम रही है रात – गिरिजा कुमार माथुर

अभी तो झूम रही है रात - गिरिजा कुमार माथुर

Kajal in eyes and a little shyness… Here is a lovely poem by the well known poet Girija Kumar Mathur. Rajiv Krishna Saxena अभी तो झूम रही है रात बडा काजल आँजा है आज भरी आखों में हलकी लाज। तुम्हारे ही महलों में प्रान जला क्या दीपक सारी रात निशा …

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उठो स्वदेश के लिये – क्षेमचंद सुमन

उठो स्वदेश के लिये - क्षेमचंद सुमन

Here is a great poem from which inspiration may be derived. Auther is the well-known poet Kshem Chand Suman. Rajiv Krishna Saxena उठो स्वदेश के लिये उठो स्वदेश के लिये बने कराल काल तुम उठो स्वदेश के लिये बने विशाल ढाल तुम उठो हिमाद्रि श्रंग से तुम्हे प्रजा पुकारती उठो …

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