Here is a very moving poem of Ibne Insha. How after all the society can be that insensitive to the plight of a child in destitution? Rajiv Krishna Saxena यह बच्चा कैसा बच्चा है यह बच्चा कैसा बच्चा है यह बच्चा काला-काला-सा यह काला-सा, मटियाला-सा यह बच्चा भूखा-भूखा-सा यह बच्चा …
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