Early morning certainly weaves magic and here Roop Narayan Tripathi Ji describes this magic! – Rajiv Krishna Saxena भोर हुई पेड़ों की बीन बोलने लगी भोर हुई पेड़ों की बीन बोलने लगी, पत पात हिले शाख शाख डोलने लगी। कहीं दूर किरणों के तार झनझ्ना उठे, सपनो के स्वर डूबे …
Read More »शुरू हुआ उजियाला होना – हरिवंश राय बच्चन
Here is another poem of Shri Harivansh Rai Bachhan, from the collection “Nisha Nimantran”. In the last stanza, the poet calls those homes happy where sound of little children is heard early in the morning. Rajiv Krishna Saxena शुरू हुआ उजियाला होना हटता जाता है नभ से तम संख्या तारों …
Read More »पगडंडी – प्रयाग शुक्ल
A nerrow track in the forest. Where does it go? Rajiv Krishna Saxena पगडंडी जाती पगडंडी यह वन को खींच लिये जाती है मन को शुभ्र–धवल कुछ–कुछ मटमैली अपने में सिमटी, पर, फैली। चली गई है खोई–खोई पत्तों की मह–मह से धोई फूलों के रंगों में छिप कर, कहीं दूर …
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