यह कदम्ब का पेड़ यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥ ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली। किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥ तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता। उस नीची डाली …
Read More »हिमाद्रि तुंग शृंग से – जयशंकर प्रसाद
Here is an old classic inspirational poem by Jay Shankar Prasad – Rajiv Krishna Saxena हिमाद्रि तुंग शृंग से हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती– स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती– ‘अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!’ असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण …
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