Here is an old classic, the desire of a flower by Makhanlal Chaturvedi Ji – Rajiv Krishna Saxena पुष्प की अभिलाषा चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊँ चाह नहीं, …
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