रिम झिम बरस रहा है पानी गड़ गड़ गड़ गड़ गरज गरज घन चम चम चमक बिजुरिया के संग ढम ढम ढम ढम पिटा ढिंढोरा झूम उठा सारा जन जीवन उमड़ घुमड़ कर मेघों नें अब आंधी …
Read More »पुरबा जो डोल गई – शिवबहादुर सिंह भदौरिया
Purbaa (eastern winds) is the harbinger of rains to follow and that changes the atmosphere in a village. This is beautifully depicted in this lovely poem of Shiv Bahadur Singh Bhadoriya. Pure rural ethos of the words is exhilarating! Rajiv Krishna Saxena पुरबा जो डोल गई घटा घटा आँगन में …
Read More »पक्षी और बादल – रामधारी सिंह दिनकर
Borders between nations are man-made. Nature however has no regards for these borders. Dinker Ji puts is very well in this poem. Rajiv Krishna Saxena पक्षी और बादल पक्षी और बादल ये भगवान के डाकिये हैं, जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं। हम तो समझ नहीं पाते …
Read More »वर्षा के मेघ कटे – गोपी कृष्ण गोपेश
A very nice poem that describes the scene after the rain. Rajiv Krishna Saxena वर्षा के मेघ कटे वर्षा के मेघ कटे – रहे–रहे आसमान बहुत साफ़ हो गया है, वर्षा के मेघ कटे! पेड़ों की छाँव ज़रा और हरी हो गई है, बाग़ में बग़ीचों में और तरी हो …
Read More »बूँद टपकी एक नभ से – भवानी प्रसाद मिश्र
Here is a lovely poem of Bhavani Prasad Mishra on rains…first few drops from the sky and then heavy showers. You need to read it out loud and slowly and see the magic of the flow of language. Rajiv KrishnaSaxena बूँद टपकी एक नभ से बूँद टपकी एक नभ से, …
Read More »ऐसा नियम न बाँधो – आनंद शर्मा
There is no uniformity in nature. So is the life is not a monotone and has happiness and sorrows. Rajiv Krishna Saxena ऐसा नियम न बाँधो हर गायक का अपन स्वर है हर स्वर की अपनी मादकता ऐसा नियम न बाँधो सारे गायक एक तरह से गाएँ। कुछ नखशिख सागर …
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