Here is another poem of Hullad Muradabadi, on finding a home to live in the era of sky rocketing prices. Rajiv Krishna Saxena रहने को घर नहीं है कमरा तो एक ही है कैसे चले गुजारा बीबी गई थी मैके लौटी नहीं दुबारा कहते हैं लोग मुझको शादी-शुदा कुँआरा रहने …
Read More »