Here is a touching poem about a daughter. The realized and/or unrealized discrimination between sons and daughter comes in acute focus. – सयानी बिटिया जबसे हुई सयानी बिटिया भूली राजा-रानी बिटिया बाज़ारों में आते-जाते होती पानी-पानी बिटिया जाना तुझे पराये घर को मत कर यों मनमानी बिटिया किस घर को …
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