यह कदम्ब का पेड़ यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥ ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली। किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥ तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता। उस नीची डाली …
Read More »पिता की मृत्यु पर – निदा फ़ाज़ली
A son turns out to be a copy of his father. As we grow, we gradually realize that in our mannerism, thinking and opinions, we become more and more like our fathers. Here is a touching poem that brings out this truth out in the voice of the son at …
Read More »बाप का कंधा – अज्ञात
Here is a poem that I received through a WhatsApp group. I do not know who wrote it but the poem is moving indeed. Rajiv Krishna Saxena बाप का कंधा मेरे कंधे पर बैठा मेरा बेटा जब मेरे कंधे पर खड़ा हो गया मुझसे कहने लगा देखो पापा मैं …
Read More »कर्ण का कृष्ण को उत्तर (रश्मिरथी, अध्याय 3) – रामधारी सिंह दिनकर
Rashmirathi is quite a phenomenon in the world of Hindi poetry. Here is another excerpt from third chapter. Lord Krishna had failed to convince Duryodhana to avoid the war. Duryodhana had refused to give any thing back to Pandavas and Krishna had left after declaring that a war in now …
Read More »सयानी बिटिया – अशोक अंजुम
Here is a touching poem about a daughter. The realized and/or unrealized discrimination between sons and daughter comes in acute focus. – सयानी बिटिया जबसे हुई सयानी बिटिया भूली राजा-रानी बिटिया बाज़ारों में आते-जाते होती पानी-पानी बिटिया जाना तुझे पराये घर को मत कर यों मनमानी बिटिया किस घर को …
Read More »वर्षा के मेघ कटे – गोपी कृष्ण गोपेश
A very nice poem that describes the scene after the rain. Rajiv Krishna Saxena वर्षा के मेघ कटे वर्षा के मेघ कटे – रहे–रहे आसमान बहुत साफ़ हो गया है, वर्षा के मेघ कटे! पेड़ों की छाँव ज़रा और हरी हो गई है, बाग़ में बग़ीचों में और तरी हो …
Read More »सिंधु में ज्वार – अटल बिहारी वाजपेयी
On the auspicious occasion of the birthday of our past Prime Minister Atal Ji, I am posting excerpt from an inspiring poem written by him. सिंधु में ज्वार आज सिंधु में ज्वार उठा है नगपति फिर ललकार उठा है कुरुक्षेत्र के कण–कण से फिर पांचजन्य हुँकार उठा है। शत–शत आघातों …
Read More »स्मृति बच्चों की – वीरेंद्र मिश्र
Poet’s little son and daughter died at a very young age. Given below is an excerpt from the poem of his grief. Rajiv Krishna Saxena स्मृति बच्चों की अब टूट चुके हैं शीशे उन दरवाज़ों के जो मन के रंग महल के दृढ़ जड़ प्रहरी हैं जिनको केवल हिलना–डुलना ही …
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