Early morning certainly weaves magic and here Roop Narayan Tripathi Ji describes this magic! – Rajiv Krishna Saxena भोर हुई पेड़ों की बीन बोलने लगी भोर हुई पेड़ों की बीन बोलने लगी, पत पात हिले शाख शाख डोलने लगी। कहीं दूर किरणों के तार झनझ्ना उठे, सपनो के स्वर डूबे …
Read More »मौन निमंत्रण – सुमित्रानंदन पंत
Here is a lovely poem of Sumitra Nandan Pant. In the stillness of night, there is a quiet invitation from stars. Who could it be from? Rajiv Krishna Saxena मौन निमंत्रण स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार चकित रहता शिशु सा नादान, विश्व के पलकों पर सुकुमार विचरते हैं जब स्वप्न …
Read More »यह दिल खोल तुम्हारा हँसना – गोपाल सिंह नेपाली
Here is a lovely poem for a lover by the well-known poet Gopal Singh Nepali. Rajiv Krishna Saxena यह दिल खोल तुम्हारा हँसना प्रिये तुम्हारी इन आँखों में मेरा जीवन बोल रहा है बोले मधुप फूल की बोली, बोले चाँद समझ लें तारे गा–गाकर मधुगीत प्रीति के, सिंधु किसी के …
Read More »मधु की रात – चिरंजीत
Living a life is tough but there are some nights of pure love and bliss. Here is how Chiranjit describes such a night. Rajiv Krishna Saxena मधु की रात अलक सन्धया ने सँवारी है अभी म्यान में चन्दा कटारी है अभी चम्पई रंग पे न आ पाया निखार रात यह …
Read More »कानाफूसी – राम विलास शर्मा
Ram Vilas Ji has so beautifully scandalized the Nature in the following mukta chhand kavita! References are to moon and stars in night, Semal (Palas) trees and mustard crops blooming in spring time, hot winds blowing in peak summers, and the early morning sunrise, in the four stanzas of the …
Read More »हाथ बटाओ – निदा फाजली
So many things are there in this word that an Omani-potant God can do to help. Why does He not? Here is a thoughtful poem from Nida Fazli. Rajiv Krishna Saxena हाथ बटाओ नील गगन पर बैठे कब तक चांद सितारों से झांकोगे पर्वत की ऊंची चोटी से कब तक …
Read More »रात और शहनाई – रमानाथ अवस्थी
A lovely poem of despondency of love, inability to sleep and surviving the night – Rajiv Krishna Saxena रात और शहनाई सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात। मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई ज़हर भरी …
Read More »यात्रा और यात्री – हरिवंश राय बच्चन
Journey of life is frustrating. One may even wonder, why travel at all. Yet, as Bachchan Ji says in this poem, one has to keep on moving till the last breath. Rajiv Krishna Saxena यात्रा और यात्री साँस चलती है तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर! चल रहा है तारकों का …
Read More »कौन सिखाता है चिड़ियों को – सोहनलाल द्विवेदी
Here is a popular poem of Sohanlal Dwivedi Ji. Who teaches birds… Many would have read it in school days. Rajiv Krishna Saxena कौन सिखाता है चिड़ियों को कौन सिखाता है चिडियों को चीं–चीं चीं–चीं करना? कौन सिखाता फुदक–फुदक कर उनको चलना फिरना? कौन सिखाता फुर से उड़ना दाने चुग-चुग …
Read More »लो दिन बीता – हरिवंश राय बच्चन
We always think that the next day or night would bring something new and break the hum-drum of life. But nothing new happens… Rajiv Krishna Saxena लो दिन बीता सूरज ढलकर पश्चिम पहुँचा डूबा, संध्या आई, छाई सौ संध्या सी वह संध्या थी क्यों उठते–उठते सोचा था दिन में होगी …
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