Tag Archives: Thakur Gopalsharan Singh

परिवर्तन – ठाकुर गोपालशरण सिंह

Disaster turns the world topsi-turvy in no time

Change or parivartan they say, is the only that never stops. Everything changes as day follows night and night follows day. Everyone faces constant ups and downs. Here is a poem that makes a statement to this effect. Rajiv Krishna Saxena देखो यह जग का परिवर्तन जिन कलियों को खिलते …

Read More »

मैं हूँ अपराधी किस प्रकार?– ठाकुर गोपाल शरण सिंह

मैं हूँ अपराधी किस प्रकार – ठाकुर गोपाल शरण सिंह

How can loving someone be a crime? Asks Thakur Gopalsharan Singh in this fine poem –Rajiv Krishna Saxena मैं हूँ अपराधी किस प्रकार? सुन कर प्राणों के प्रेम–गीत, निज कंपित अधरों से सभीत। मैंने पूछा था एक बार, है कितना मुझसे तुम्हें प्यार? मैं हूँ अपराधी किस प्रकार? हो गये …

Read More »