Tag Archives: Turmoil

तुम्हारा साथ: रामदरश मिश्र

तुम्हारा साथ सुख के दुख के पथ पर जीवन छोड़ता हुआ पदचाप गया, तुम साथ रहीं, हँसते–हँसते इतना लम्बा पथ नाप गया। तुम उतरीं चुपके से मेरे यौवन वन में बन कर बहार, गुनगुना उठे भौंरे, गुंजित हो कोयल का आलाप गया। स्वप्निल स्वप्निल सा लगा गगन रंगों में भीगी–सी …

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आकुल अंतर – हरिवंश राय बच्चन

Internal turmoil of a being may outwardly be seen as an entirely different phenomenon. In reality however, the outward manifestation is just a byproduct of the internal turmoil. Beautifully expressed in this well-known poem of Harivansh Rai Bachchan. Rajiv Krishna Saxena आकुल अंतर लहर सागर का नहीं श्रृंगार, उसकी विकलता …

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