Dushyant Kumar’s poetry is restless and points to gross injustice and absurdities in society. Here is another example. Rajiv Krishna Saxena वो आदमी नहीं है वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है, माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है। वे कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तगू, मैं क्या …
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