It is tempting to follow things that entice. But where would that lead us? Rajiv Krishna Saxena हवाएँ ना जाने हवाएँ ना जाने कहाँ ले जाएँ। यह हँसी का छोर उजला यह चमक नीली कहाँ ले जाए तुम्हारी आँख सपनीली चमकता आकाश–जल हो चाँद प्यारा हो फूल–जैसा तन, सुरभि सा …
Read More »बांसुरी दिन की – माहेश्वर तिवारी
Here is a nice poetic interpretation of a quiet day in forest and natural outdoors. Rajiv Krishna Saxena बांसुरी दिन की होंठ पर रख लो उठा कर बांसुरी दिन की देर तक बजते रहें ये नदी, जंगल, खेत कंपकपी पहने खड़े हों दूब, नरकुल, बेंत पहाड़ों की हथेली पर धूप …
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