Society is changing and restlessness is increasing. We have to somehow cope with the change. Rajiv Krishna Saxena जहाँ मैं हूँ अजब दहशत में है डूबा हुआ मंजर, जहाँ मैं हूँ धमाके गूंजने लगते हैं, रह-रहकर, जहाँ मैं हूँ कोई चीखे तो जैसे और बढ़ जाता है सन्नाटा सभी के …
Read More »असमर्थता – राजेंद्र पासवान ‘घायल’
There are so many things that we would like to do or say in life, but are unable to do. Here is a nice poem by Rajendra Paswan ‘Ghayal’. Rajiv Krishna Saxena असमर्थता ख्यालों में बिना खोये हुए हम रह नहीं पाते मगर जो है ख्यालों में उसे भी कह …
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