Promise of a madari to his dear monkey
बोले न बोले तू,बेटा ही है मेरा, बहुत ही सहारा सुन, मुझे सदा है तेरा

मदारी का वादा – राजीव कृष्ण सक्सेना

I have the greatest respect for people who earn their bread everyday. I mean the people like street hawkers, fruit and vegetable sellers and street jugglers and madaris. They have no idea what the day has in store for them and whether they would earn sufficient to feed their loved ones. Yet they leave in the morning full of hopes. They have big hearts indeed. Some time ago I had posted a poem of mine -Khilone Wala – that explored the thoughts of a khilone wala selling clay toys in this age of computers. Here is a poem about a madari and his monkey. On a hot summer day, a tired madari and his monkey seek shelter under a peepul tree. Thoughts of madari as he looks at his tiny companion are depicted in this poem.I hope you would enjoy it and appreciate the lovely illustration by Garima Saxena – Rajiv K. Saxena

मदारी का वादा

बहुत तेज गर्मी है
आजा सुस्ता लें कुछ
पीपल की छैयां में
पसीना सुख लें कुछ

 

थका हुआ लगता है
मुझे आज बेटा तू
बोल नहीं सकता पर
नहीं छुपा मुझसे कुछ

कितनी ही गलियों में
कितने चौबारों  में
दिखलाया खेल आज
कितने बाज़ारों में

कितनी ही जगह आज
डमरू डम डम बोला
बंसी की धुन के संग
घुमा तू ले झोला

उछल कूद कर कर के
लोगो को बहलाया
तेरे ही कारण कुछ
अन्न देह ने पाया

पता नहीं कैसा यह
तेरा मेरा नेता
हर दिन बस गली गली
रब हमको भटकाता

 

हर दिन फिर खेल वहीं
बच्चो की किलकारी
हर दिन का अंत वहीं
जेबें बिलकुल खाली

सोचता कभी यह हूँ
बोल अगर तू सकता
कहता तू क्या मुझसे
क्या क्या बातें करता

“इतनी मेहनत बाबा
काहे को करता है
पेट नहीं पूरा क्यों
फिर भी यह भरता है”

 

शायद कहता यह भी
“अब से मैं जाऊंगा
बेटा हूँ मैं तेरा
कमा कर खिलाऊंगा”

 

बोले न बोले तू
बेटा ही है मेरा
बहुत ही सहारा सुन
मुझे सदा है तेरा

उठ जा अब चलते है
लाठी रख कंधे पर
एक खेल और आज
करते हैं नुक्क्ड़ पर

मंगल की हाट लगी
लोगो की भीड़ बड़ी
खेल दिखलाने का अब
मौका है इसी घडी

चने अभी खा ले तू
समय नहीं ज्यादा है
केला ले कर दूंगा
पक्का यह वादा है

∼ राजीव कृष्ण सक्सेना

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